रगों में लाल लहू है, तेरे भी मेरे भी ;
फिर ये जात और धरम कहाँ है... तू बता...
किसने किसे बनाया मालूम नहीं, तुझे भी मुझे भी ;
फिर ये उपरवाला आया कहाँ से... तू बता...
सभी मजहब ने तो इंसानियत सिखाई है, तुझे भी मुझे भी ;
फिर ये दंगे फसाद क्यूँ है... तू बता...
प्यार तो सभी ने किया है, तूने भी मैंने भी ;
फिर ये नफरत क्यों है, तू बता...
अपनों के लिए दरवाजे तो खुले है, तेरे भी मेरे भी ;
फिर दूसरों के लिए दीवारें क्यों है, तू बता...
पेट तो सभी का भरता है, तेरा भी मेरा भी ;
फिर किसान मरता क्यों है, तू बता...
तुझे धर्म ने बनाया हुआ इन्सान चाहिए ;
या इन्सान ने बनाया हुआ धर्म चाहिए, तू बता...
- आशित साबळे
फिर ये जात और धरम कहाँ है... तू बता...
किसने किसे बनाया मालूम नहीं, तुझे भी मुझे भी ;
फिर ये उपरवाला आया कहाँ से... तू बता...
सभी मजहब ने तो इंसानियत सिखाई है, तुझे भी मुझे भी ;
फिर ये दंगे फसाद क्यूँ है... तू बता...
प्यार तो सभी ने किया है, तूने भी मैंने भी ;
फिर ये नफरत क्यों है, तू बता...
अपनों के लिए दरवाजे तो खुले है, तेरे भी मेरे भी ;
फिर दूसरों के लिए दीवारें क्यों है, तू बता...
पेट तो सभी का भरता है, तेरा भी मेरा भी ;
फिर किसान मरता क्यों है, तू बता...
तुझे धर्म ने बनाया हुआ इन्सान चाहिए ;
या इन्सान ने बनाया हुआ धर्म चाहिए, तू बता...
- आशित साबळे
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